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Showing posts from 2017

बात एक मुलाकात की

उस दिन की भी क्या बात थी कुछ पल ही सही, वो मेरे साथ थी ॥१॥ ना कोई कस्मे ना कोई वादे बस उस मुलाकात की थी कुछ बातें॥२॥ जानते थे की कोई मंज़िल नहीं इस राह की हमने तो उस सफर को ही अपना नसीब समझ लिया ॥३॥ उसके साथ बिताये लम्होंमे, खुद को कभी था खोया आज उसकी ख़ामोशी में, हमने अपना ही इंतज़ार किया ॥४॥ आँखें नम थी, होठ भी सिले थे बस एक दूसरे को देखकर हमने सारा वक़्त गुज़ार लिया ॥५॥ खुश थे उसे खुश देख कर, आज हमने भी अपनी ख़ुशी का थोड़ा दिखावा कर लिया ॥६॥

कहानी कुछ और होती

लमहा लमहा जोड़, एक कहानी ज़िन्दगी, उस कहानी में तुम न होती, तो कहानी कुछ और होती ॥१॥ तुम्हें रस्मों रिवाज़ों की परवा न होती, थोड़ी हिम्मत मुझमें और होती, तो कहानी कुछ और होती ॥२॥ प्याला हो सागर में न खुदको डुबाया होता, ये दिल अगर संग-ए-दिल ही होता, तो कहानी कुछ और होती ॥३॥ कुछ दूर और तू साथ निभाती, तू होती, तेरा प्यार होता, तो कहानी कुछ और होती ॥४॥ काश के तेरे सवालों का मेरे पास कोई जवाब होता, इंतज़ार न सही, तुझे थोड़ा एतबार ही होता, तो कहानी कुछ और होती ॥५॥ ज़िन्दगी के उस मोड़ पे न मिले होते हम, कुछ दूर ही सही, पर साथ न चले होते हम, तो कहानी कुछ और होती, तो कहानी कुछ और होती ॥६॥

बस मैं इतना चाहता हूँ

कड़कड़ाती सर्दी में, जब सुबह की धुप निकले  अपने बरामदे में,खुर्सी पर बैठं एक पुरानी किताब के मुड़े पंनोंको सीधा करू  बस मैं इतना चाहता हूँ ||१ || बर्फ की सफ़ेद चादर, जब  पहाड़ो पे लिपटी हो सर्द हवा कापते बदन को सहलाये मैं अपने माज़ी के साथ, कुछ पल बिताऊं  बस मैं इतना चाहता हूँ || २ ||  बारिश की बूंदे जब  पेड़ो के सरसराते पतों को छूकर  मिटटी की बाहो में जा सिमटे  उस  मिटटी में अपने बच्चों के साथ खेलु  बस मैं इतना चाहता  हूँ  || ३ || सागर में उठती लहरे, जब  किनारे को छूती हो  गीली रेत पर अपने साथी का हाथ थामे कुछ दूर मैं चलू बस मैं इतना चाहता हूँ  || ४ || जब वक़्त, उम्र का हिसाब  मेरे चेहरे पर झुर्रियों से लिख रहा हो ज़िन्दगी को मुस्कुरातें हुए  अपने कब्र पर मैं देखु  बस मैं इतना चाहता हूँ   बस मैं इतना चाहता हूँ  || ५ ||