कड़कड़ाती सर्दी में, जब
सुबह की धुप निकले
अपने बरामदे में,खुर्सी पर
बैठं एक पुरानी किताब के मुड़े पंनोंको सीधा करू
बस मैं इतना चाहता हूँ ||१ ||
बर्फ की सफ़ेद चादर, जब
पहाड़ो पे लिपटी हो
सर्द हवा कापते बदन को सहलाये
मैं अपने माज़ी के साथ, कुछ पल बिताऊं
बस मैं इतना चाहता हूँ || २ ||
बारिश की बूंदे जब
पेड़ो के सरसराते पतों को छूकर
मिटटी की बाहो में जा सिमटे
उस मिटटी में अपने बच्चों के साथ खेलु
बस मैं इतना चाहता हूँ || ३ ||
सागर में उठती लहरे, जब
किनारे को छूती हो
गीली रेत पर अपने साथी का हाथ थामे
कुछ दूर मैं चलू
बस मैं इतना चाहता हूँ || ४ ||
जब वक़्त, उम्र का हिसाब
मेरे चेहरे पर झुर्रियों से लिख रहा हो
ज़िन्दगी को मुस्कुरातें हुए
अपने कब्र पर मैं देखु
बस मैं इतना चाहता हूँ
बस मैं इतना चाहता हूँ || ५ ||
सुबह की धुप निकले
अपने बरामदे में,खुर्सी पर
बैठं एक पुरानी किताब के मुड़े पंनोंको सीधा करू
बस मैं इतना चाहता हूँ ||१ ||
बर्फ की सफ़ेद चादर, जब
पहाड़ो पे लिपटी हो
सर्द हवा कापते बदन को सहलाये
मैं अपने माज़ी के साथ, कुछ पल बिताऊं
बस मैं इतना चाहता हूँ || २ ||
बारिश की बूंदे जब
पेड़ो के सरसराते पतों को छूकर
मिटटी की बाहो में जा सिमटे
उस मिटटी में अपने बच्चों के साथ खेलु
बस मैं इतना चाहता हूँ || ३ ||
सागर में उठती लहरे, जब
किनारे को छूती हो
गीली रेत पर अपने साथी का हाथ थामे
कुछ दूर मैं चलू
बस मैं इतना चाहता हूँ || ४ ||
जब वक़्त, उम्र का हिसाब
मेरे चेहरे पर झुर्रियों से लिख रहा हो
ज़िन्दगी को मुस्कुरातें हुए
अपने कब्र पर मैं देखु
बस मैं इतना चाहता हूँ
बस मैं इतना चाहता हूँ || ५ ||
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteVery nice ketan......
ReplyDeleteGreat Yaar.. nice
ReplyDeleteवाह केतन गुलजार साहिब
ReplyDelete:) may God bless you!
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