कड़कड़ाती सर्दी में, जब सुबह की धुप निकले अपने बरामदे में,खुर्सी पर बैठं एक पुरानी किताब के मुड़े पंनोंको सीधा करू बस मैं इतना चाहता हूँ ||१ || बर्फ की सफ़ेद चादर, जब पहाड़ो पे लिपटी हो सर्द हवा कापते बदन को सहलाये मैं अपने माज़ी के साथ, कुछ पल बिताऊं बस मैं इतना चाहता हूँ || २ || बारिश की बूंदे जब पेड़ो के सरसराते पतों को छूकर मिटटी की बाहो में जा सिमटे उस मिटटी में अपने बच्चों के साथ खेलु बस मैं इतना चाहता हूँ || ३ || सागर में उठती लहरे, जब किनारे को छूती हो गीली रेत पर अपने साथी का हाथ थामे कुछ दूर मैं चलू बस मैं इतना चाहता हूँ || ४ || जब वक़्त, उम्र का हिसाब मेरे चेहरे पर झुर्रियों से लिख रहा हो ज़िन्दगी को मुस्कुरातें हुए अपने कब्र पर मैं देखु बस मैं इतना चाहता हूँ बस मैं इतना चाहता हूँ || ५ ||