Skip to main content

Posts

Showing posts from April, 2017

बस मैं इतना चाहता हूँ

कड़कड़ाती सर्दी में, जब सुबह की धुप निकले  अपने बरामदे में,खुर्सी पर बैठं एक पुरानी किताब के मुड़े पंनोंको सीधा करू  बस मैं इतना चाहता हूँ ||१ || बर्फ की सफ़ेद चादर, जब  पहाड़ो पे लिपटी हो सर्द हवा कापते बदन को सहलाये मैं अपने माज़ी के साथ, कुछ पल बिताऊं  बस मैं इतना चाहता हूँ || २ ||  बारिश की बूंदे जब  पेड़ो के सरसराते पतों को छूकर  मिटटी की बाहो में जा सिमटे  उस  मिटटी में अपने बच्चों के साथ खेलु  बस मैं इतना चाहता  हूँ  || ३ || सागर में उठती लहरे, जब  किनारे को छूती हो  गीली रेत पर अपने साथी का हाथ थामे कुछ दूर मैं चलू बस मैं इतना चाहता हूँ  || ४ || जब वक़्त, उम्र का हिसाब  मेरे चेहरे पर झुर्रियों से लिख रहा हो ज़िन्दगी को मुस्कुरातें हुए  अपने कब्र पर मैं देखु  बस मैं इतना चाहता हूँ   बस मैं इतना चाहता हूँ  || ५ ||